सांत्वन ......

  सांत्वन 

जेव्हा आयुष्याच  गाठोडं
फ़क्त  दुःखानीच  भरलं
उघडताच  ते गाठोडं
मन  माझ  खुप रडलं

          दुःख  सहन  करून
          जीव  झाला  अगदी  नकोसा
          देवाला  प्रश्न  विचारावा  लागला
          देवा  तू  असा रे  कसा?

प्रत्येक  दुःखाच्या  वेळी 
मन  माझं  रडत  होतं 
आता  तरी  सुख  येईल 
म्हणून  मन  माझं  झुरत  होतं 

          आयुष्यात  सारखं  दुःखच  येता 
          रडायला  कुणी  सांगितलं 
          माझ्याच  मनानं  माझ्याच  मनाला 
          खंबीर  व्हायला  शिकवलं 

जेव्हा  जेव्हा  दुःखाच्या  क्षणाला 
नयन  आले  भरून 
सुख  काय  असतं  समजलं 
अश्रुंचे  त्या  मोती  बनवून 

          ऊन , पाऊस  आणि वाऱ्याची 
          आता  नाही  उरली  खंत 
          सृष्टीवरच्या  प्रत्येक  जीवाला 
          कधी  ना  कधी  असतोच  अंत 

अनमोल  आयुष्याचा  क्षण
कसा  घालवायचा  ठरवायचं
कारण  येताच  शेवटचा  क्षण
आपल्याला  देखील जायचंच..........

                                   ------- संध्या  गडगे - सिन्नरकर 

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