Posts

Showing posts from July, 2019

☺आठवण ☺

☺आठवण ☺ विसरलीस तू  मला  तरीही  मी  नाही  तुला  विसरणार  ढगातून  येणाऱ्या  पावसाच्या  धारा  पाहायचं  मी  नाही सोडणार.......   नाही  आली  माझी  आठवण  तरीही  चालेल  पण  तुझी  आठवण  काढायला  मी  नाही  विसरणार  मुसळधार त्या  अमृतधारांमध्ये  भिजण्याचं  मी  नाही  सोडणार .......  नाही  माझ्या  सुखात  सामील  झालीस  तरीही  चालेल  पण  तुझ्या  सुखात  सामील  होण्याचं  मी  नाही  सोडणार  माझा तो आनंद  पावसात  जाऊन   व्यक्त  करण्याचं  मी नाही  सोडणार.......   नाही  माझ्या  दुःखात  सामील  झालीस  तरीही  चालेल  पण  तुझ्या  दुःखात  सामील  होण्याचं  मी  नाही  सोडणार  माझे  ते  अश्रू  पावसाच्या  धारांमध्ये  लपवण्याचं  मी  नाही  सोडणार ......  विसरलीस  माझा  चेहरा  तरीही  चालेल  पण  मी  तुझा  चेहरा  नाही  विसरणार  पावसात  भिजत  असताना  डोळे  बंद  करून  तुझा  चेहरा  आठवण्याचे  मी  नाही  सोडणार ......  विसरलीस  माझ  नाव   तरीही  चालेल  पण  मी  तुझे  नाव  नाही  विसरणार  तुझे  नाव  त्या  पावसाला  जाऊन  ऐकवण्याचे  मी  नाही  सोडणार ...... 
☺दाता - परमेश्वर ☺ तूच  आहेस  सखा  तूच  आहेस  सर्वस्व  तुझ्यामध्येच  सामावलेलं  आहे  प्रत्येकाचं  विश्व  कोणास कसा जन्म  दयायचा  हे  आहे  तुझ्याच  हाती  त्यातूनच  निर्माण  झाली  आगळी-वेगळी  नाती  म्हणतात  जन्माला  येतानाच  नशीब  सोबत  येतं  जगी  सर्वकाही  हे  तुझ्या  म्हणण्याप्रमाणेच  घडतं  प्रत्येकाला  देताना  तू  दिलंस  मन  किती छान  पण  आजच्या  युगात  काहींना  राहिलं  नाही त्याचं  भान  माणसाला  तू  दिलंस  मधुर  असं  मुख  मुक्या  प्राण्यांमध्ये  आहे  त्यांच्याहून  जास्त  सुख  कधी  कधी  शिणून  जीव  होतो अगदी नकोसा  आयुष्य  निर्माण  करण्याचा  तुझा  न्याय  आहे  तरी  कसा  मांडला  कसा  परमेश्वरा  हा  खेळ  आयुष्याचा  कोणाला  कधी  बाद  करायचं  हा  निर्णय  आहे  आहे  तुझा  कोणाला  कुठवर  चालवायचं  हे  आहे  तुझ्याच  हाती  पण  चुकीच्या  वागण्यातून  काहीजण  करून  घेतात  आपलीच   माती  तू  कोण  कसा  आहेस  कोणास  ठाऊक  नाही  कुणी  तुला  मानत   तर  कुणी  मानत  नाही  हृदयात  करुनी  हे  परमेश्वरा  मंदिर  तुझे  जीवन  जगू  आनंदाने  देणे  आहे 

हळवे मन

हळवे मन  मन  हे  माझे  हळवे  झाले  काय करावे  समजेना ? हळव्या  माझ्या  मनाला  काय  करावे  उमजेना ? परमेश्वराची  काय  ही  दृष्टी  बनवली  ही  सुंदर  सृष्टी  फळे - फुले  अन किलबिल  पाखरे  रंगीबेरंगी  ती  फुलपाखरे  निसर्गरम्य  त्या  दुनियेचा  अर्थ  मला  कळेना ? वर्षातील  हे  तीन  ऋतू  उन्हाळा , पावसाळा  अन  हिवाळा  चातक  पक्षाची  ती  प्रतीक्षा  अन  कोकीळ  पक्षाचा  तो  मंजुळ  गळा  पाखरांच्या  त्या  गुणगुणण्याचा  अर्थ  मला  कळेना ?  सूर्याची  ती  प्रखर  किरणं  अन  चंद्राचं  ते  शितल  असणं  आकाशाचं  विराट  दिसणं  अन  नभी  चमचमतं  चांदणं  प्रखर  अन  शितल  किरणांचा  अर्थ  मला कळेना ? अफाट  या  सृष्टीची  काया  अवाढव्य  त्या  वृक्षाची  छाया  इवल्याशा  पिलाच्या  चोचीतील  दाणा  अन  मुक्या  पशु -पक्षांची  माया  मुक्या  जीवांच्या  जगण्याचा  अर्थ  मला  कळेना ? नाट्यरूपी  हे  क्षणभर  जीवन  प्रत्येकजण  जगती  आपले  आपण  जीवनाच्या  वाटेवर  कोणाला  मिळे  कधी  सुख  तर  दुःखी  होते  कधी  कोणाचे  मन  सुख - दुःखाच्या  या  धाग्यांचा  अर्थ  मला  कळेना ? प्रत्येकाच्या 

गाथा आयुष्याची

गाथा  आयुष्याची  आयुष्याची एक रीत  कळतेय  माला  म्हणूनच  तर  आधार  देत  आहे  मनाला  ओघळले  जरी  कधीही  अश्रु  नयनांतुनी   गुंफायची  त्या  मोत्यांची  माळ  रंगीत  धाग्यांतुनी  खुप  कष्ट  करून  देखील  जर  नाही  मिळाले  फळ  अनुभवातून  त्या  दयायचं  मनाला  बळ  जेव्हा  नेहमी  नेहमी   केलेले   श्रम  जाते  व्यर्थ  समजून  घ्यायचं  संयमाने  त्यात  असते  काहीतरी  तथ्य  जे जे  दुःखाच्या  क्षणी  देतात  आपल्याला  साथ  आपणही  करायची  मदत   जसे  दिवा  आणि  वात  ध्यानी असुदयायचं  गर्वाच  घर  खालीच  असतं  एक  मोर  पिस  भेटताच   मोर  व्हायचं  नसतं  जेव्हा  जेव्हा  आयुष्यात  संकटं  येतात  आपल्याला  पक्क - खंबीर  करूनच  जातात  खेळतच  रहायचा  हा  आयुष्याचा  लपंडाव  विसरुन  चालणार  नाही  अनमोल  आयुष्याचा  भाव                                    -------संध्या  गडगे - सिन्नरकर